पर्युषण पर्व का द्वितीय दिवस स्वाध्याय दिवस के रूप में मनाया गया JAIN HINDUSTAN NEWS-:

तेरापंथ भवन, गंगाशहर। श्री जैन श्वेतांबर तेरापंथी सभा गंगाशहर के तत्वावधान में पर्युषण पर्व का द्वितीय दिवस स्वाध्याय दिवस के रूप में मनाया गया। तेरापंथ भवन गंगाशहर में उपस्थित धर्म सभा को संबोधित करते हुए युग प्रधान आचार्य श्री महाश्रमण जी की सुशिष्या साध्वी श्री चरितार्थ प्रभा जी ने भगवान महावीर के मरीचि कुमार के भव का वर्णन किया। उन्होंने अपने उद्बोधन में कहा कि जैन धर्म ईश्वर को आठ कर्मों की मुक्त अवस्था के रूप में मानता है। जीवन में चाहे जितनी सुख सुविधा मिल जाए, अगर सम्यक्त्व नहीं आया, तो सब व्यर्थ है। शुद्ध दान, शुद्ध भावना और पवित्रता से सम्यक्त्व आता है। उन्होंने बहुत ही मार्मिक उदाहरण द्वारा सम्यक्त्व की जानकारी देते हुए कहा कि अहंकार से नीच गोत्र का बंध होता है, उच्च गोत्र का नहीं। इसलिए अहंकार किसी का नहीं करें। धर्म सभा को संबोधित करते हुए साध्वी श्री प्रांजल प्रभा जी ने अपने मंगल उद्बोधन में तीर्थंकर पार्श्वनाथ भगवान की स्तुति की जानकारी देते हुए बताया कि पार्श्वनाथ भगवान जन्म मरण के चक्र से मुक्त होकर सिद्ध अवस्था को प्राप्त हो गए हैं। जिस प्रकार पारसमणी लोहे को भी सोना बना देती है, वैसे ही भक्त यदि पूरी श्रद्धा व एकाग्रता से पार्श्व स्तुति करता है तो निश्चित ही आत्मा की शुद्धि होती है। जिस प्रकार सूर्य पर बादल आ जाने से रोशनी कम हो जाती है, वैसे ही आत्मा पर कर्म रूपी बादल आ जाने से श्रद्धा कम हो जाती है। उन्होंने एक घटना के माध्यम से उवसग्गहर स्त्रोत के एक-एक शब्द की सुंदर व सटीक जानकारी दी। JAIN HINDUSTAN NEWS

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